आज 26 जुलाई है आज का दिन कारगिल विजय दिवस के रुप में मनाया जाता है और आज के दिन हम अपने वीर सपूतों को याद करते हैं जिन्होंने कारगिल युद्ध में विजय के लिए अपनी जान गवा दी थी। कारगिल के युद्ध मे उत्तर प्रदेश के अमर सपूत कैप्टन मनोज पांडेय ने अपनी जान की परवाह न करते हुए देश की रक्षा के लिए अपने प्राण न्योछावर कर दिए।
कारगिल के हीरो मनोज पांडे की एक अलग ही कहानी है जिन्होंने अपने वीरता के दम पर दुश्मनों को धूल चटा दिया और पाकिस्तानी घुसपैठियों को भागने पर मजबूर कर दिया।
परमवीर चक्र विजेता (मरणोपरांत) मनोज पांडेय को आज देश याद कर रहा है. परमवीर चक्र विजेता मनोज पांडेय के पिता गोपीचंद्र पांडेय ने मीडिया से जांबाज मनोज से जुड़ी यादें साझा कीं।
सैनिक स्कूल से सेना में भर्ती होने का देखा था ख्वाब :
मनोज पांडे के पिता गोपी चंद्र पांडे ने कहा कि मनोज पांडे की शिक्षा लखनऊ से हुई और उन्होंने आर्मी में जाने का सपना तभी बना लिया जब वह आर्मी स्कूल में भर्ती हुए थे।
उस समय बनारस में 67 बच्चों का इंटरव्यू हुआ था. यह विधि का विधान है कि मनोज अकेले उन 67 बच्चों में पास हुए।
उसी समय सेना के अधिकारियों ने उनसे पूछा कि सेना में क्यों भर्ती होना चाह रहे हो? मनोज ने कहा कि उनका उद्देश्य परमवीर चक्र पाना है।
आपको बता दें कि जिस सैनिक स्कूल से मनोज पांडे ने पढ़ाई की थी आज वह सैनिक स्कूल मनोज पांडे के नाम से ही जाना जाता है। आपको बता दें कि 5 मई 1999 को मनोज पांडे कारगिल युद्ध में शामिल हुए थे।
दो माह तक लगातार लड़ने के बाद एक हफ्ते पहले उनको टारगेट दिया गया था कि खालूबार चोटी जो सात किलोमीटर लंबी है उस पर 47 पाकिस्तानी कब्जा जमाए बैठे हुए हैं, जिनसे हमारी सेना को बहुत नुकसान पहुंचा है. जो भी सैनिक दिन में निकलता था उसको वह मार गिराते थे. यह सेना के सामने बड़ा अहम सवाल था.
ऊपर जाकर 18000 फुट की ऊंचाई पर उन पाकिस्तानियों से टक्कर लेना आसान नहीं था. उस मुश्किल कार्य को मनोज ने करने का बीड़ा उठाया. उस समय मनोज पांडेय से अधिकारियों ने कहा कि मनोज तुम दो महीने से लगातार लड़ रहे हो.
कुछ वक्त के लिए तुम आराम कर लो. ये बात सुनकर मनोज अपने अधिकारी से भिड़ गए.
तीसरे बंकर को नष्ट करते समय ही ऊपर चौथे बंकर से उन पर गोली चलाई गई, जो सीधे उनके सिर में लगी. जान की परवाह न करते हुए मनोज ने जवानों को ललकारते हुए चौथे बंकर पर खून से लथपथ होने के बावजूद कब्जा कर मिट्टी में मिला दिया. पिता बताते हैं कि मनोज के पास कारतूस नहीं बचे थे, एक ग्रेनाइड रह गया था. उसको उन्होंने चौथे बंकर में दाग दिया. उनके पास एक खुखरी थी. खुखरी से पाकिस्तानियों का गला काट कर फिर चौथे बंकर से बाहर आए और कारगिल पर जीत दर्ज की।
25 जून 1999 को आखरी बार उन्होंने अपनी मां को कॉल किया था और अपनी मां से जीत के लिए आशीर्वाद लिया उसके बाद उन्होंने कभी कॉल नहीं किया क्योंकि इस युद्ध में वह शहीद हो गए। मनोज पांडे के पिता ने कहा कि उनके शहादत पर उन्हें गर्व है लेकिन आज भी उन्हें अपने बेटे की कमी खलती है कि काश उनका बेटा आज उनके साथ रहता।