यूपी निकाय चुनावों में ओबीसी आरक्षण लागू किए जाने के मामले में हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच में दाखिल जनहित याचिकाओं पर बुधवार को सुनवाई हुई। सुनवाई के दौरान याचियों की ओर से मुख्य रूप से यह दलील दी गई कि चुनावों में ओबीसी आरक्षण ओबीसी वर्ग की राजनीतिक स्थिति का आकलन किए बिना नहीं तय किया जा सकता है। हालांकि समय की कमी के चलते सुनवाई पूरी नहीं हो सकी। लिहाजा न्यायालय इस मामले गुरुवार को भी सुनवाई करेगा। अधिसूचना जारी करने पर लगी रोक भी गुरुवार तक जारी रहेगी।
यह आदेश न्यायमूर्ति देवेन्द्र कुमार उपाध्याय और न्यायमूर्ति सौरभ लवानिया की खंडपीठ ने वैभव पांडेय व अन्य याचियों की ओर से दाखिल याचिकाओं पर एक साथ सुनवाई करते हुए दिया। याची पक्ष की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता एलपी मिश्रा ने दलील दी कि सरकार द्वारा जिस तरह से ओबीसी आरक्षण जारी किया गया है, वह अपने आप में गलत है। उनका कहना था कि निकाय चुनावों में पिछड़े वर्ग को मिलने वाला आरक्षण नौकरियों अथवा दाखिले इत्यादि में दिए जाने वाले आरक्षण से भिन्न है। यह एक राजनीतिक आरक्षण है, न कि सामाजिक, शैक्षिक अथवा आर्थिक।
उन्होंने दलील दी कि सर्वोच्च न्यायालय ने इसीलिए सुरेश महाजन मामले में सुरेश महाजन मामले में ट्रिपल टेस्ट फार्मूले की व्यवस्था अपनाने का आदेश दिया क्योंकि ट्रिपल टेस्ट के जारी ही पिछड़े वर्ग की सही राजनीतिक स्थिति का आकलन किया जा सकता है। याची पक्ष की ओर से सरकार के रैपिड सर्वे को ट्रिपल टेस्ट फार्मूले जैसा मानने की दलील का विरोध करते हुए कहा गया कि सही स्थिति का आकलन इस उद्देश्य के लिए डेडिकेटेड कमेटी का गठन कर के ही किया जा सकता है। याची पक्ष की बहस गुरुवार को भी जारी रहेगी। जिसके पश्चात राज्य सरकार अपना पक्ष रखेगी।